Bal krishna sharma naveen biography in hindi literature

बालकृष्ण शर्मा नवीन

बालकृष्ण शर्मा 'नवीन' g १८९७ - १९६० ई०) हिन्दीकवि थे। वे परम्परा और समकालीनता के कवि हैं। उनकी कविता में स्वच्छन्दतावादी धारा के प्रतिनिधि स्वर के साथ-साथ राष्ट्रीय आंदोलन की चेतना, गांधी दर्शन और संवेदनाओं की झंकृतियां समान ऊर्जा और उठान के साथ सुनी जा सकती हैं। आधुनिक हिन्दी कविता के विकास में उनका स्थान अविस्मरणीय है। वे जीवनभर पत्रकारिता और राष्ट्रीय आंदोलन से जुड़े रहे।

नवीन जी बहुत बढ़िया कवि हैं। इनकी कविताओं में भक्ति-भावना, राष्ट्र-प्रेम तथा विद्रोह का स्वर प्रमुखता से आया है। आपने ब्रजभाषा के प्रभाव से युक्त खड़ी बोली हिन्दी में काव्य रचना की।

उन्हे साहित्य एवं शिक्षा के क्षेत्र में सन १९६० में पद्मभूषण से सम्मानित किया गया था।

जीवन परिचय

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बालकृष्ण शर्मा 'नवीन' का जन्म ८ दिसम्बर १८९७ ई० को मध्य प्रदेश के शुजालपुर जिला शाजापुर के समीप के ग्राम भयाना में हुआ। उनके पिता जमुनादास शर्मा वल्लभ मत के अनुयायी थे और नाथद्वारा के मन्दिरों में पुरोहिती करते थे। 11 वर्ष की अवस्था में उनकी पढ़ाई शुरू हुई। मिडिल तक की पढ़ाई नवीन की गृहजनपद के परगना स्कूल में हुई। आगे की पढ़ाई के लिए उन्हें उज्जैन भेजा गया और वहाँ के माधव कॉलेज में प्रविष्ट होकर मैट्रिक की पढ़ाई पूरी की। बालकृष्ण शर्मा माधव कॉलेज, उज्जैन के अपने अध्ययनकाल में ही युगीन साहित्यिक वातावरण और राष्ट्रीय आन्दोलन की हलचलों में पर्याप्त रुचि लेने लगे थे और उन सबका उनके युवामन पर एक प्रभाव भी दर्ज हो रहा था। कानपुर से गणेशशंकर विद्यार्थी के सम्पादन में प्रकाशित होने वाली पत्रिका 'प्रताप' का नियमित अध्ययन करते थे। इसी दौरान वे माखनलाल चतुर्वेदी और मैथिलीशरण गुप्त के संपर्क में आए। उन्होंने कांग्रेस के अधिवेशन में विधिवत भाग लिया।

साहित्य रचना

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शर्माजी के साहित्यिक जीवन की पहली रचना 'सन्तू' नामक एक कहानी थी। इसे उन्होंने छपने के लिए सरस्वती में भेजा था। इसके बाद वे कविता की तरफ मुड़े। 'जीव ईश्वर वार्तालाप' शीर्षक की कविता से हिन्दी जगत इन्हें पहचानने लगा। इन सबसे अलग वे स्वतंत्रता आंदोलन में भी भाग लेने लगे। महात्मा गांधी के असहयोग आंदोलन में भाग लेने के लिए अपनी पढ़ाई छोड़कर राजनीति के क्षेत्र में आ गए। यहीं से नवीनजी की जेल यात्राओं का अनवरत सिलसिला शुरू हुआ, जो देश की आजादी तक निरंतर चलता रहा। असहयोग आंदोलन के बाद नमक सत्याग्रह, फिर व्यक्तिगत सत्याग्रह और अन्त में १९४२ का ऐतिहासिक भारत छोड़ो आंदोलन। इस प्रकार कुल छः जेल यात्राओं में जिन्दगी के नौ साल नवीनजी ने जेल में बिताये। शर्माजी की सर्वश्रेष्ठ रचनाएं इन्हीं जेल यात्राओं के दौरान रची गईं।

इनके महत्वपूर्ण काव्यग्रंथ हैं- कुमकुम, रश्मिरेखा, अपलक, क्वासि, उर्मिला, विनोबा स्तवन, प्राणार्पण तथा हम विषपायी जन्म के। पहली जेलयात्रा के दौरान उर्मिला की शुरूआत की। उर्मिला महाकाव्य के प्रणयन में आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी की प्रेरणा की झलक साफ देखी जा सकती है। छः सर्गों वाली इस कृति में यद्यपि उर्मिला के जन्म से लेकर लक्ष्मण से पुर्नमिलन तक की कथा कही गई है, लेकिन अन्य पक्षों के बजाय उर्मिला का विरह-वर्णन कला की दृष्टि से सबसे सरस बन पड़ा है।

देवि उर्मिले तेरी अकथित गाथा गाता हँ मैं;
किंवा तव चरिताम्बुधि-भजन के हित आता हँ मैं।
अति अगम्य बलवती लहर है थाह न पाता हँ मैं।
हृदय शिला पर तव चरणों को देवि बिठाता हँ मैं।

इसके अलावा उनकी अधिकांश कविताएं भी कारागार के शून्य कक्ष में ही लिखी गई हैं। जेल से बाहर नवीनजी काव्य की दृष्टि से कुछ विशेष नहीं लिख पाए। शिमला-समझौते में निराशा का अवतरण, मुसलमान भाइयों की खिदमत में, तुम्हारे उपवास की चिन्ता, 'एक ही थैली के चट्टे-बट्टे' आदि शीर्षकों से जो असंख्य अग्रलेख और निबंध, जेल से बाहर के अपने जीवन में नवीन ने लिखे, वे 'प्रताप' और 'प्रभा' में प्रकाशित होकर सतत् चर्चाओं के केन्द्र में रहे।

बालकृष्ण शर्मा एक अच्छे गद्यकार के साथ जागरूक पत्रकार थे। उन्होंने विद्यार्थीजी की ओजपूर्ण भावात्मक गद्य-शैली को अपना पाथेय बनाया था। विद्यार्थीजी के जीवनकाल में ही प्रताप और प्रभा के सम्पादन का स्वतंत्र दायित्व संभाल कर न सिर्फ उन्होंने अपनी पत्रकारिता संबंधी भाषाओं का परिचय दिया, बल्कि प्रभा के झण्डा अंक के द्वारा हिन्दी की राष्ट्रीय पत्रकारिता में एक गौरवपूर्ण पृष्ठ भी जोड़ा।

बाहरी कड़ियाँ

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