Biography of viyogi harimau people
वियोगी हरि
| वियोगी हरि | |
|---|---|
| जन्म | 01 अगस्त छतरपुर, मध्य प्रदेश, भारत |
| मौत | 6 मई () (उम्र92 वर्ष) |
| पेशा | प्रमुख कवि, हिंदी गद्यकार |
| राजनैतिकपार्टी | अध्यक्ष, हरिजन सेवक संघ |
| पुरस्कार | मंगलाप्रसाद पारितोषक |
वियोगी हरि ( ई.) प्रसिद्ध गांधीवादी एवं हिन्दी के साहित्यकार थे। ये आधुनिक ब्रजभाषा के प्रमुख कवि, हिंदी के सफल गद्यकार तथा समाज-सेवी सन्त थे। "वीर-सतसई" पर इन्हें मंगलाप्रसाद पारितोषिक मिला था। उन्होंने अनेक ग्रंथों का संपादन, प्राचीन कविताओं का संग्रह तथा संतों की वाणियों का संकलन किया। कविता, नाटक, गद्यगीत, निबंध तथा बालोपयोगी पुस्तकें भी लिखी हैं। वे लगभग 40 वर्षों तक हिन्दी साहित्य की सक्रिय सेवा करते रहे। वे हरिजन सेवक संघ, गाँधी स्मारक निधि तथा भूदान आंदोलन में सक्रिय रहे।
जीवनवृत्त
[संपादित करें]वियोगी हरि का जन्म छतरपुर (मध्य प्रदेश) में सन १८९६ ई० में एक कान्यकुब्ज ब्राह्मण परिवार में हुआ था। बचपन में ही पिता की मृत्यु हो जाने के कारण इनका पालन-पोषण एवं शिक्षा ननिहाल में घर पर ही हुई।
शिक्षा आदि के कार्य में वियोगी हरि प्रारम्भ से ही मेधावी रहे थे। इनकी हिन्दी और संस्कृत की प्रारम्भिक शिक्षा घर पर ही हुई। मैट्रिकुलेशन की परीक्षा इन्होंने में छतरपुर के हाईस्कूल से उत्तीर्ण की। किशोरावस्था से ही दर्शनशास्त्र में विशेष अभिरुचि थी। छतरपुर की महारानी कमलकुमारी 'युगलप्रिया' के स्नेह-सिक्त सम्पर्क से उनके साथ भारत के प्रसिद्ध तीर्थों का इन्होंने भ्रमण किया।
सन में पुरुषोत्तमदास टण्डन से इनका परिचय हुआ और उन्हीं से इन्हें लेखन और साहित्य-सेवा की सबसे पहले प्रेरणा मिली। अस्पृश्यतानिवारण की दिशा में उन्होंने में कानपुर के 'प्रताप' में एक लेखमाला लिखी थी। महात्मा गाँधी के सम्पर्क ने इन्हें इस कार्य से और अधिक बाँध दिया था। यह कार्य ही उनके जीवन का एक उद्देश्य बन गया। गाँधीजी द्वारा प्रवर्तित 'हरिजन-सेवक' (हिन्दी संस्करण) के सम्पादन का कार्य भी इन्होंने सँभाल लिया था। तभी से 'हरिजन सेवक संघ' से इनका घनिष्ठ सम्बन्ध हो गया था। बाद में वियोगी हरि इसके अध्यक्ष भी रहे।
कृतियाँ एवं संकलन
[संपादित करें]धर्म, दर्शन, भक्ति, हरिजन कार्य, सामाजिक सुधार तथा अनेक साहित्यिक विषयों को लेकर वियोगी हरि ने लगभग पुस्तकें लिखी हैं, जो इस प्रकार हैं-
1.
Biography of viyogi harimau in english
'साहित्य विहार' ( ई.)
2. 'छद्मयोगिनी नाटिका' ( ई.)
3. 'ब्रज माधुरी सार' ( ई.)
4. 'कवि कीर्तन' ( ई.)
5.
Biography of viyogi harimau
'सूरदास की विनयपत्रिका' ( ई.)
6. 'अंतर्नाद' ( ई.)
7. 'भावना' ( ई.)
8. 'प्रार्थना' ( ई.)
9. 'तुलसीदासकृत विनय-पत्रिका हरिजोणी टीका' ( ई.)
'वीर-सतसई' ( ई.)
'विश्वधर्म' ( ई.)
'योगी अरविन्द की दिव्यवाणी'
'छत्रसाल ग्रंथावली'
'मन्दिर प्रवेश'
'प्रबुद्ध यामुन' अथवा 'यामुनाचार्य-चरित' ( ई.)
'अनुरागवाटिका'
'मेवाड़ केशरी'
'चरखा स्तोत्र'
'मेरा जीवन प्रवाह'
'तरंगिणी'
'चरखे की गूँज'
'गाँधी जी का आदर्श'
'प्रेमशतक'
'प्रेमपथिक'
'प्रेमांजलि'
'प्रेमपरिषद्'
'वीर बिरुदावली'
'गुरु पुष्पांजलि'
'संतवाणी'
'संत-सुधासार'
'युद्ध वाणी'
'यों भी तो देखिये'
'श्रद्धाकण'
'पावभर आटा'
'जपुजी'
'संक्षिप्त सूरसागर'
'संत सुधासार'
'दादू'
'शुकदेव खण्डकाव्य'
भाषा एवं शैली
[संपादित करें]वियोगी हरि का अध्यात्म-चिंतन सर्वेश्वरवादी है। उनकी प्रेमलक्षणाभक्ति, ज्ञान एवं कर्म की अविरोधिनी है। उस पर सूरदास, तुलसीदास, कबीर तथा सूफ़ी कवियों की विचारधारा का प्रभाव पड़ा है। उनका धर्म समंवयवादी विश्वधर्म है, जिसका आदर्श बहुत कुछ गाँधीवाद और आधार ईश्वरवाद है। सामाजिक विचार सुधारवादी और कबीर आदि संतों की भाँति खण्डनात्मक है। उनकी रचनाओं में मुख्यत: वीर और शांत भावना की व्यंजना हुई है। उनके गद्य गीत चिंतन प्रधान एवं व्यंग्यात्मक हैं। गद्य भाषा अलंकृत, काव्यात्मक, लाक्षणिक तथा काव्य-भाषा सरल और मिश्रित है।
भाषा कोमल शब्दावली से युक्त खड़ीबोली। अंग्रेजी, अरबी, फारसी आदि के शब्दों का प्रयोग।
शैली विचारात्मक, भावात्मक, संवादात्मक आदि।
सम्मान
[संपादित करें]वियोगी हरि ने में पुरुषोत्तमदास टण्डन के साथ मिलकर प्रयागराज में 'हिन्दी विद्यापीठ' की स्थापना की थी। सन में उनकी प्रसिद्ध कृति 'वीर-सतसई' पर उन्हें 'मंगलाप्रसाद पारितोषक' प्रदान किया गया था।